नही रहे सुजात बुखारी।
वह श्रीनगर के अखबार राइजिंग कश्मीर के एडिटर-इन-चीफ थे। इन्होंने कशमीर टाइम्स से अपने जीवन की शुरुवात की थी।
बाद में वे द हिन्दू से जुड़ गए। इस दौरान कई खबरों के चलते उन्हें राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली, यही नही वे 15 साल तक द हिंदू अखबार के कश्मीर ब्यूरो चीफ रहे।
बुखारी कश्मीर में होने वाली हर घटना पर ग्राउंड रिपोर्ट करते थे। इसी वजह से वह आतंकियों के भी निशाने पर आ गए.
वह कश्मीर घाटी की सबसे बड़ी और पुरानी साहित्य संस्था अदबी मरकज कामराज के अध्यक्ष थे।
शुजात पर इसके पहले भी तीन बार हमला हो चुका था। साल 2000 में हुए एक हमले के बाद बुखारी को पुलिस सुरक्षा मुहैया कराई गई थी।
शुजात के अखबार राइजिंग कश्मीर को कई बार सरकार की तरफ से सेंसरशिप का सामना करना पड़ा था।
कश्मीर घाटी में कई शांति सम्मेलनों के आयोजन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी, साथ ही साथ वें ट्रैक टू डिप्लोमेसी के तहत पाकिस्तान से वार्ता प्रक्रिया में शामिल भारतीय प्रतिनिधिमंडल का भी हिस्सा रहे हैं।
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