आखिर क्यों भारत देश के 60 प्रतिशत लोग खेती करते हैे?
इस लेख को लिखने के पीछे मेरा मकसद
सिर्फ इतना है कि आपको भारत में होने वाली खेती के बारे में कुछ तथ्य बता सकूं। सबसे
पहले मेरा
सवाल- मध्यकाल में कृषि एक ऐसा उद्योग था जो जीडीपी में तीस फीसदी से अधिक का
योगदान करता था। मगर अब यह 16 से 17
फीसदी तक गिर गया है। मगर आंकड़ों के अनुसार ये एकमात्र उद्योग है, जिसमें 2/3 से अधिक आबादी लगी है। क्या यह विरोधाभास देश के आर्थिक विकास में
एक रुकावट पैदा नहीं कर रहा?
काफी शोध करने के बाद, इन सभी प्रशनों के उत्तर दे रहा हूं, पूरा पढ़ कर आप भारतीय खेती का इतिहास और इसकी शुरुवात कैसे हुई
दोनों जान सकते हैं-
कृषि को एक
उद्योग की तरह देखें-
कृषि को एक उद्योग कहना बहुत ही प्रगतिशील विचार है। खेती करने की इंसानी क्षमता हमारी सभ्यता का आधार है। अगर हम शिकारी और भोजन इकट्ठा करने वाले होते, तो कभी इस सभ्यता का विकास नहीं हुआ होता। मिट्टी से भोजन निकालने की अपनी क्षमता के कारण ही हमने शहर और नगर बनाए और वहां बस गए। कई दूसरी कलाएं, विज्ञान और बाकी चीजें विकसित हुईं। अगर हम भाला लेकर किसी जानवर के पीछे भाग रहे होते, तो हम कभी इस तरह की सभ्यता का विकास नहीं कर पाते।
कृषि को एक उद्योग कहना बहुत ही प्रगतिशील विचार है। खेती करने की इंसानी क्षमता हमारी सभ्यता का आधार है। अगर हम शिकारी और भोजन इकट्ठा करने वाले होते, तो कभी इस सभ्यता का विकास नहीं हुआ होता। मिट्टी से भोजन निकालने की अपनी क्षमता के कारण ही हमने शहर और नगर बनाए और वहां बस गए। कई दूसरी कलाएं, विज्ञान और बाकी चीजें विकसित हुईं। अगर हम भाला लेकर किसी जानवर के पीछे भाग रहे होते, तो हम कभी इस तरह की सभ्यता का विकास नहीं कर पाते।
कृषि
हमारी सभ्यता का आधार है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए। यह एक तरह का जादू है। जिस
धरती पर आप चलते हैं, वह
भोजन में बदल जाता है। आप सोच रहे होंगे कि मैं किस जादू की बात कर रहा हूं, तो आज रात डिनर में
आप बाकी भोजन उसी तरह करें मगर अचार की जगह थोड़ी सी मिट्टी लें और अपने भोजन में
वह लगाकर खाएं। आप देखेंगे कि अगर हमें मिट्टी खानी पड़े तो यह कितना खराब लगता
है। मगर जिस मिट्टी को हम खा नहीं सकते, उसे हम बढ़िया भोजन में बदल देते
हैं, जो
हमें पोषण देता है और हमारे अंदर की हाड़-मांस को बनाता है। यह कोई छोटी बात नहीं
है, मिट्टी को भोजन में बदलना ही कृषि है।
आपको
बता दूं कि दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों को छोड़कर सिर्फ यही देश है जहां कृषि
का 12,000 साल से अधिक का इतिहास है। यहाँ दक्षिण भारत में, तमिल नाडू में हम इसी
ज़मीन को 12000 सालों से जोतते आ रहे हैं। अमेरिका में मिट्टी को ‘गंदगी’ या धूल कहते हैं।
यहां हम थाई मन्नु (धरती मां) कहते हैं क्योंकि हमारा इस मिट्टी से गहरा रिश्ता
है।
भारत की एक बड़ी आबादी खेती क्यों कर
रही है?
वास्को डी गामा आए थे भारत |
करीब
170 से
180 साल
पहले तक भारत एक औद्योगिक देश था। तीन सौ साल पहले शायद हमारा देश दुनिया का सबसे
अधिक उद्योग करने वाला देश था। यहां का एक बड़ा उद्योग वस्त्र
उद्योग था। हम इस देश से दुनिया भर में इस्तेमाल होने वाले कपड़ों का 60 प्रतिशत
निर्यात करते थे। 1800 से
1860 ईसवी
के बीच अंग्रेजों ने देखा कि सिर्फ कपड़े खरीदने के लिए यूरोप का काफी पैसा भारत आ
रहा था। अरब के लोग भारतीय कपड़ा खरीदते थे और उसे यूरोप में दस गुना दाम पर बेचते
थे। तो उनका सारा सोना-चांदी भारत पहुंच रहा था। तभी उन्होंने अपनी खोज करना शुरू
किया। कोलंबस, वास्को डि गामा और बाकियों ने एक
समुद्री रास्ता से जोखिम उठाना शुरू किया ताकि हर चीज के लिए अरबों द्वारा दस गुना
अधिक कीमत वसूले जाने से बच सकें।
जब
वे यहां आए तो उन्होंने देखा कि यहां का उद्योग कितना सरल और देशी था: एक व्यक्ति
बैठकर ठक, ठक, ठक करता था और कपड़ा
बन जाता था। उन्होंने देखा कि यह बहुत सरल उद्योग है और वे मशीनों से इसे कर सकते
हैं, फिर
उन्होंने मशीनें लगानी शुरू कीं। 60 साल के समय में इस देश से कपड़ों का निर्यात 98 फीसदी कम हो गया।
सिर्फ 2 फीसदी बचा क्योंकि उन्होंने भारी कर लगा दिए और कुछ जगहों पर, जहां बहुत महीन कपड़ा
बनाया जा रहा था, उन्होंने
कारीगरों के अंगूठे काट दिए और करघों को नष्ट कर दिया।
भारतीय खेती के तरीखे, इस तरह होती थी खेती |
1830 के
दशक में एक अंग्रेज गवर्नर जनरल ने कहा कि ‘भारत के खेत हस्त बुनकरों की
हड्डियों से सफ़ेद हो गए हैं।’ उद्योग के नष्ट होने से लाखों लोग
भूख से मर गए। उस समय एक बड़ी आबादी वापस खेती की ओर चली गई। ये खेती मुख्य रूप से
जीवन का सहारा थी, उन्होंने
अपने और अपने परिवारों के लिए खाना उगाने के लिए जमीन को जोतना शुरू कर दिया। यही
वजह है कि 1947 में
भारत की लगभग 77 फीसदी
आबादी खेती में लगी थी।
By Suraj Pratap Singh (Journalist)
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