आखिर क्यों मोदी सरकार नें SC/ST एक्ट में किया बदलाव, क्या दलितों को क्रीमी लेयर में नहीं लाना चहिए?
बीते कुछ दिनों पहले केंद्र सरकार
ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए SC/ST एक्ट में पुन: बदलाव कर दिया है। इस बदलाव के तहत अगर किसी
पर SC/ST
एक्ट लगता है,
तो उसकी बिना जांच-पड़ताल किए गिरफ्तारी का प्रावधान हैं। केंद्र के इस फैसले से पहलें
सवर्णों द्वारा भारत बंद कर हिंसा दिखाई गई, बाद में कांग्रेसियों द्वारा। लेकिन
दोनों में फर्क था, सवर्ण लड़ाई लड़ रहे थे आरक्षण खत्म करने के लिए, तो वहीं
कांग्रेस ने पेट्रोल के बढ़ते दामों को लेकर हिंसा दिखाई।
भारत बंद में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित अन्य पार्टी और उनके समर्थक भी
हरकत में नजर आए, लेकिन सभी SC/ST एक्ट को लेकर बचते नजर आए। किसी ने इस एक्ट को लेकर कोई बयानबाजी नहीं की।
सरकार चाहे किसी की हो, आखिर क्यों कोई इस मुद्दे पर बात करने से कतराता है।
मोदी सरकार के इस
फैसले से भारत बंद मे जो लोग मरे, लोगों को जो दिक्कतें झेलनी पड़ी उसका जिम्मेदार
कौन होगा। चलिए आपको बताते हैं कि क्या है केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून-
सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट में किया था यह बदलाव-
सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के बदलाव करते हुए कहा था कि मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। कोर्ट ने कहा था कि शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा भी दर्ज नहीं किया जाएगा। शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी और जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक नहीं होगी। डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर किसी तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है? सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को मानते हुए कहा था कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के बदलाव करते हुए कहा था कि मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। कोर्ट ने कहा था कि शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा भी दर्ज नहीं किया जाएगा। शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी और जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक नहीं होगी। डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर किसी तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है? सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को मानते हुए कहा था कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं।
केंद्र सरकार द्वारा संशोधन के बाद अब ऐसा होगा SC/ST एक्ट-
एससी\एसटी संशोधन विधेयक 2018 के जरिए मूल कानून में धारा 18A जोड़ी जाएगी। इसके जरिए पुराने कानून को बहाल
कर दिया जाएगा। इस तरीके से सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए प्रावधान रद्द हो जाएंगे.
मामले में केस दर्ज होते ही गिरफ्तारी का प्रावधान है। इसके अलावा आरोपी को अग्रिम
जमानत भी नहीं मिल सकेगी। आरोपी को हाईकोर्ट से ही नियमित जमानत मिल सकेगी। मामले
में जांच इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अफसर करेंगे। जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल
संबंधी शिकायत पर तुरंत मामला दर्ज होगा। एससी/एसटी मामलों की सुनवाई सिर्फ स्पेशल
कोर्ट में होगी। सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर करने से पहले
जांच एजेंसी को अथॉरिटी से इजाजत नहीं लेनी होगी।
ये तो बात थी SC/ST एक्ट की, लेकिन देश की सबसे
बड़ी समस्या है आरक्षण। इसकी दिक्कत देश के युवाओं को झेलनी पड़ रही है। आरक्षण की
वजह से नौकरी न मिलने से आए दिन युवा पीढ़ी आत्महत्या कर रही है।
मेरा सवाल है कि सम्पन्न
दलितों को क्यो है आरक्षण का अधिकार? क्या इन्हें क्रीमी लेयर के अंतरगत नहीं लाना
चाहिए?
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से
कहा है कि दलितों को सरकारी नौकरियों में बिना शर्त पदोन्नति में आरक्षण मिलना
चाहिये। obc
reservation
बाबासाहेब
अंबेडकर ने दलितों के लिये आरक्षण का प्रावधान क्यों किया गया था? वो इसलिये क्योंकि वो उस समय अशिक्षित, गरीब और पिछड़े हुए थे। लेकिन अब इस समाज के
जो लोग मजबूत और सम्पन्न हो चुके हैं, उन्हें आरक्षण की क्या जरूरत है।
आरक्षण में
पदोन्नति पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया है कि अगर ओबीसी आरक्षण
में क्रीमीलेयर लागू है तो एससी-एसटी आरक्षण में इसे क्यों नहीं लागू किया गया है। एस सी/एस टी को यदि प्रमोशन में आरक्षण दिया जा सकता है तो ओबीसी
को क्यों नहीं?
ऐसा नहीं है कि ये सवाल पहली बार उठ रहा है, इसे कई बार कई मंचो से उठाया गया है क्योंकि आरक्षण का विरोध करते समय लोग यही
कहते हैं कि सम्पन्न दलितों को आरक्षण का अधिकार क्यों दिया गया है?
एससी-एसटी आरक्षण का मुद्दा ऐसा है, जिससे प्रत्येक राजनीतिक दल बचकर चलता है और इसमें
कोई छेड़छाड़ नहीं करना चाहता है। भाजपा भी इससे अछूती नहीं है।
निष्पक्ष तरीके से सोचा जाये तो जब ओबीसी
आरक्षण में क्रीमीलेयर लागू है तो एससी-एसटी आरक्षण में भी इसे लागू होना ही
चाहिये।
वास्तव में दलित नेतृत्व पर जिस समाज का
कब्जा है वो नहीं चाहता है कि दलित आरक्षण में क्रीमीलेयर व्यवस्था को लागू किया
जाये। क्या राम विलास पासवान, मायावती जैसे लोगों के परिजनों को आरक्षण की
आवश्यकता है?
आखिल क्या है
क्रीमी लेयर और क्यों दलित आरक्षण में क्रीमी लेयर व्यवस्था लागू नहीं किया जाता?
यदि
क्रीमीलेयर व्यवस्था को दलित आरक्षण में लागू कर दिया जाता है तो ऐसे लोग आरक्षण
से वंचित हो जाऐंगे। ये सच्चाई किसी से भी छुपी नहीं रह गई है कि आरक्षण का फायदा
कुछ लोगों की बपौती बन चुका है और ये लोग पीढ़ी दर पीढ़ी आरक्षण का फायदा लेना
चाहते हैं।
सच्चाई तो यह
है कि दलित समाज में सम्पन्न दलितों को ऐसा समूह पैदा हो गया है जो आरक्षण को गरीब
दलितों तक पहुँचने नहीं दे रहा है। इसलिये इसमें क्रीमीमिलेयर लागू होना अपरिहार्य है।
सरकार, सुप्रीम कोर्ट और भारतीय समाज को इस पर जरूर विचार करना चाहिए कि जो दलित व
पिछड़े आर्थिक, सामाजिक रूप से कमजोर है उन्हें आरक्षण परिधि में लाया जाए। जब कोई एससी या
एसटी या ओबीसी नौकरी में आ गया तो उसे प्रमोशन में आरक्षण की क्या आवश्यकता है?
By Suraj Pratap Singh (Journalist)
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